Monday, 27 July 2020

उत्तर भारतीय संगीत में प्रचलित स्वर लिपि पद्धति

उत्तर भारतीय संगीत में प्रचलित स्वर लिपि पद्धति 

भातखंडे स्वरलिपि पद्धति                                                            
 

स्वर चिन्ह 

शुद्ध स्वर  -   सा रे ग म प ध नी 
कोमल स्वर  -  रे      नी 
                 
तीव्र स्वर - M
                                        सप्तक कि चिंह 

मंद्र - स्वर के नीचे बिंदु - ग़ 
मध्य - कोई चिंह नहीं  - ग़ 
तार - स्वर कि उपर बिंदु  -गं

Sslrlglmlpldlnil      srgmpdni      surugumupuduuniu  
           मंद्र                               मध्य                                       तार 

ताल चिन्ह  मंद्र मध्य 

सम  - X
ख़ाली - ०
विभाग - ।
ताली - संख्या - २३४५

स्वर सौंदर्य 

मींड   -   qger
खटका - (प) अर्थ - म प ध प,ध प म प, प म ध प आदि ।




 













Thursday, 23 July 2020

Swar in indian music

भारतीय संगीत में स्वर 
Indian musical instruments
22 श्रुतियो से मुख्य,12 श्रुतियो को स्वर कहते है । स्वर को नाम इस प्रकार है ।

    सा - षडज
     रे - ऋषभ 
    ग - गांधार 
    म - मध्यम 
    प - पंचम 
    ध - धैवत 
    नी - निषाद 



क्रमश - सा रे ग म प ध नी कहा जाता है ।

और पिछले ब्लॉग के माध्यम से हमने इन सभी स्वरों की श्रुति पर स्थापना सिखी है।
बतायी गयी वही आधुनिक श्रुति स्वर व्यवस्था शुद्ध सप्तक कहलाता है ।

स्वरों के प्रकार - चल स्वर एवं चल स्वर 

चल स्वर - सा और प (जिनका श्रुति स्थान निश्चित है ।)
चल - रे ग ध नी (जिनका श्रुति स्थान निश्चित होने कि साथ चल भी है ।)

चल स्वर कि 3 रूप है एक रूप है - शुद्ध ,कोमल और तीव्र
कोमल - ऋषभ, गांधार, धैवत, निषाद 
तीव्र - मध्यम 

कुलमिलकर हमारे पास 7 शुद्ध ,4 कोमल एवं 1 तीव्र स्वर है।
अर्थात 12 स्वर है जो क्रमश निम्नलिखित रूप में है 


               सा   रे    रे      ग   म  मे  प      ध   नी   नी 
               1   2   3   4   5   6   7   8   9   10  11  12 








Wednesday, 22 July 2020

Name of shruti in indian music

भारतीय संगीत में 22 श्रुतियो के नाम 

श्रुतियो के नाम       आधुनिक  व्यवस्था                         प्राचीन व्यवस्था
  1. तीव्रा               -      षडज             
  2. कुमुदवती 
  3. मंदा
  4. छनदोवती                                                            4)   षडज  
  5. दयावती          -       ऋषभ 
  6. रंजनी 
  7. रतिका                                                                7)    ऋषभ
  8. रौद्री                -       गांधार 
  9. क्रोधा                                                                 9)   गांधार 
  10. वज्रिका            -      मध्यम 
  11. प्रसाऋणी 
  12. प्रीति 
  13. मार्जनी                                                                13)   मध्यम 
  14. क्षिति               -        पंचम 
  15. रक्ता
  16. संदीपनी 
  17. आलपनी                                                              17)    पंचम 
  18. मंदती               -        धैवत 
  19. रोहिणी 
  20. रम्या                                                                   20)   धैवत 
  21. उग्रा                  -       निषाद 
  22. क्षोभिणी                                                              22)   निषाद

What is Shruti in Indian music

संगीत में श्रुति क्या होता है? भाग 1

नित्यं गीतोपयोगित्वमभिज्ञेयतवम्प्यूत।
लक्षे परोक्तसु पर्यातम संगीत्म्श्रुति लक्षणम ।।

उपरयुक्त श्लोक अभिनव राग मंजरी से लिया गया है जिसका अर्थ है, वह आवाज़ जो किसी गीत में प्रयुक्त की जा सके और एक दूसरे से स्पष्ट भिन्न पहचानी जा सके।
उदाहरण कि लिए अगर 240 कम्पन प्रति सेकंड कोई एक स्वर है तो 241 उससे भिन्न है लेकिन शायद उसे कुशल संगीतकार  भी अपने कानो से नहीं पहचान पाए ,और यदि 240 से हम 245 क़रीब आते है तो शायद उसमें भिन्नत पहचानी जा सके ।
इसी आधार पर विद्वानो ने श्रुति की परिभाषा यह दी है की जो ध्वनि एक दूसरे से भिन्न स्पष्ट पहचानी जा सके ।

एक सप्तक में इसी प्रकार 22 एसे सूक्ष्म ध्वनिया है जो हम कानो से पहचान सकते है और उसमें स्पष्ट भेद कर सकते है ।
इन्हीं 22 ध्वनियो पर 12 स्वरों की स्थापना है जिसमें 7 शुद्ध ,4 कोमल ,1 स्वर तीव्र है ।

तस्या दवविंश्शतिभेरद श्रवनात शृत्यो मता:।
हृदयभ्य्न्त रसंलग्ना नदयो द्वविर्शतिमर्ता :।।

उपयुक्त श्लोक स्वरमेलकलानिधि  से लिया गया है । जिसका अर्थ है हृदय स्थान में 22 नडिया होती है और उनकी सभी २२ ध्वनिया स्पष्ट रूप से सुनी जा सकती है । यही नाद के भी 22 भेद माने गए है ।

स्वरों में श्रुतियो को बाटने का नियम जानिए - 
4 3 2 4 4 3 2 

चतुश्चतुश्चतुश्चतुश्चैव षडजम माध्यमपंचमा।।         
द्वे द्वे निषाद गंधारो तरस्त्रिषभोधैवतो ।।

अर्थात - 
षडज मध्यम और पंचम स्वरों में चार चार श्रुतियाँ 
निषाद और गांधार में दो दो श्रुतियाँ 
ऋषभ और धैवत में तीन तीन श्रुतियाँ ।



Tuesday, 21 July 2020

What is naad ?

नाद 

प्रसिद्ध ग्रंथ संगीतरत्नाकर के अनुसार नाद की व्याख्या निम्नलिखित है


नकारं प्रांणमामानं दकारमनलं बिंदु:।
जात: प्राणअग्नि संयोगातेनम नदोभिधीयते ।। 

अर्थ

"नकार" प्राण वाचक है तथा दकार अग्नि वचाक है अर्थात जो अग्नि और वायु के योग से उत्पन्न हुआ हो ,उसे नाद कहते है ।


आहोतीनहतश्चेती द्विधा नादो निग्ध्य्ते
सोय प्रकाशते पिंडे तस्तात पिंडो भिधियते 



अर्थ
नाद के दो प्रकार है

१) आहत 
२) अनाहत

ये दोनो देह (पिंड) में प्रकट होते है ।



1. आहत नाद जो नाद दो वस्तुओं के मिलने से अर्थात टकराने या रगड़ से उत्पन्ना होता है ।जो कानो से सुनाई देता है ।यानी हम दिन भी जो भी सुनते है वो यही नाद है, जेसे किसी कोई भी संगीत हो ,धुन हो ,गाड़ियों की आवाज़ ,आपके बोलने की आवाज़ ,पंखे या मोटर चलने की आवाज़ ,आदि .
यह नाद वर्तमान विज्ञानिक नियमो के अंतर्गत है 
और इस नाद को हवा चाहिए प्रवाहित होने कि लिए ।




2. अनाहत नाद - यह नाद केवल अनुभव किया जाता है ,इससे आप अपने कानो से नहीं सुन सकते क्यूँकि इसके उत्पन्न होने का कोई राज नहीं है ।यह नाद स्वयंभू रूप से प्रकट होता है और हर जगह मौजूद है ।


               यह नाद वर्तमान विज्ञानिक सीमाओं से परे है । 
               इसे केवल सिद्ध या ऋषि मुनि ही सुन सकते है।